कोरोनरी स्टेंट कीमतों की उच्चतम सीमा निश्चित करने का भारत कानिर्णय वैश्विक बाजार को प्रभावित कर सकता है
एन आर्बर- पिछले फरवरी एक ऐतिहासिक निर्णय में, भारत के राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल एंड प्राइसिंग अथॉरिटी ने कोरोनरी स्टेंटों के कीमतों में कटौती की जो कभी-कभी अमरीका के रोगियों द्वारा दिये कीमतों से भी अधिक थे।
यह पहली बार है कि कार्डियक डिवाइस को आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में रखा गया है। सरकारी संगठन द्वारा निर्धारित सीमा के फैसले से इसकी कीमत पहले की तुलना में एक चौथाई हो गई है। भारत में नई मूल्य सीमा से धातु स्टेंटों की की उच्चतम सीमा लगभग $ 108 तय हुई हैं अौर दवाई वाले स्टेंटों की सीमा लगभग $ 444 डॉलर तय की गई है।
मिशिगन यूनिवर्सिटी में कार्डियोवस्कुलर मेडिसिन के प्रोफेसर ब्रह्मजी नल्लामोतु कहते हैं कि यह एक सकारात्मक कदम है क्योंकि भारत के मध्यम वर्ग में गैर-संज्ञेयी बीमारियाँ बढ़ रही है।
“बढ़ते मध्यम वर्ग मेँ, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, डिस्लेपीडिमिया अधिक हो रहा है, जो कोरोनरी रोग में बदल जाता है,” नल्लामोतू ने कहा जो सर्क्यलैशन जर्नल में इस महीने प्रकाशित परिप्रेक्ष्य के वरिष्ठ लेखक है। “स्टेंट की असंगत कीमतों से लोगों तक उस प्रकार की देखभाल तक पहुंच रही थी जो पश्चिमी देशों में नियमित हो गई है।”
भारत में हृदय रोग पिछले 40 वर्षों में चार गुना बढ़ गया है अौर 30 मिलियन से अधिक लोग कोरोनरी रोग से पीड़ित हैं। यह अब मौत का नंबर एक कारण है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि आवश्यक दवाओं की सूची में स्टेंट जैसे उपकरणों को शामिल करने के निर्णय से भारत में हृदय रोग के अलावा दूसरे स्थितियों में भी प्रभाव पड सकता है।
“एनएलईएम पर स्टैंट को लाने के भारत के फैसले के बाद अब अन्य चिकित्सा उपकरणों के लिए भी मूल्य नियंत्रण किया जा सकता है,” प्रिया वधेरा ने कहा जो परिप्रेक्ष्य की प्रमुख लेखक है।”
वधेरा का कहना है कि इसका मतलब यह है कि अन्य डिवाइस जो रोगी के जीवन के लिये महत्वपूर्ण हैं जैसे कि कृत्रिम हृदय वाल्व, इंट्राक्लुलर लेंस और आर्थोपेडिक इम्प्लांट्स, को भी सूची पर लाकर सुलभ किया जा सकता हैं।
कुछ व्यावहारिक रिपोर्टों बताते है कि कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां, जो कि भारतीय बाजारों का 60 प्रतिशत हिस्सा हैं, बाजार से स्टेंट ले रही हैं।
“यह पहली बार है कि भारतीय सरकार ने स्टेंट की पहुंच में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित किया है,” नलमातोतु का कहना हैँ। “अगले छह महीनों में बाजार की प्रतिक्रिया भी बहुत महत्वपूर्ण होगी।”
शोधकर्ताओं के मुताबिक, चूंकि भारत एशिया प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी है, इसलिए अन्य कम और मध्यम-आय वाले देशों में भी कीमतों को कम करके बोझ कम करने की कार्रवाई की जा सकती है।
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