क्या भारत हृदय रोग के प्रबंधन में मार्ग प्रशस्त कर सकता है?
फैकल्टी प्रश्नोत्तर
भारत में 55 मिलियन से अधिक लोग हृदय रोग से पीड़ित हैं। भारत एक राष्ट्रीय आवश्यक निदान सूची पर विचार कर रहा है। मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता ली श्रोएडर और अहमद अब्दुल-अजीज विश्लेषण करते है कि यह सूची भारत में हृदय रोग के बोझ से निपटने के लिए कैसे मदद प्रदान कर सकती है।
आवश्यक निदान सूची क्या है और यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक दवाओं की सूची से कैसे संबंधित है?
श्रोएडर: डब्ल्यूएचओ ने पहली बार 1977 में आवश्यक दवाओं की सूची की स्थापना की। इसका कारण यह था कि अच्छी दवाईयाँ उपलब्ध नहीं थीं और मरीजों को फार्मेसियों से अप्रभावी या खतरनाक विकल्प मिल रहे थे।
ईएमएल सूची डब्लूएचओ की बढी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। दवाओं की पहुंच पूरी नही है, लेकिन इसने दवाओं के वितरण को प्रमुख हितधारकों के साथ जोड़ दिया है। इसके लिये देश राष्ट्रीय स्तर के ईएमएल की स्थापना करते हैं और यह सूची तब खरीद का मार्गदर्शन करती है। भारत सहित अब 130 से अधिक देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर ईएमएल अपनाया हैं।
वर्तमान में, कई निम्न और मध्य-आय वाले देशों में डायग्नोस्टिक्स की स्थिति बहुत दशक पहले चिकित्सा की स्थिति की तरह है। यह काफी हद तक अनियमित है, कम गुणवत्ता की है और अक्सर उपलब्ध नहीं होते है। इसकी वजह से चिकित्सकों को अकसर लक्षणों और संकेतों के आधार पर सिंड्रोम का निदान करना पडता है।
डब्ल्यूएचओ ने निदान की स्थिति को सुधारने के लिए 2018 में पहली आवश्यक निदान सूची की स्थापना की।
किसी भी देश ने अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर ईडीएल को नहीं अपनाया है, लेकिन भारत के पहले होने की संभावना है। वे इस पर नेतृत्व कर रहे हैं, एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट भी प्रकाशित कर चुके है ताकि अन्य देश उनसे सीख सकें।
भारत में राष्ट्रीय आवश्यक निदान सूची कैसे मदद कर सकती है?
श्रोएडर: एक देश-स्तरीय आवश्यक निदान सूची विभिन्न तरीकों से मदद कर सकती है, खासकर भारत जैसे देश में।
इसकी कई ताकतें हैं जो निदान पर ध्यान केंद्रित करने में भूमिका निभा रही हैं: संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का आह्वान, रोगाणुरोधी प्रतिरोध से बढ़ते खतरे और महामारी प्रकोप पर निगरानी। इन वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं में से प्रत्येक को संबोधित करने के लिए एक मजबूत निदान प्रणाली आवश्यक है।
एक मजबूत निदान प्रणाली को काम करने के लिए कई भागों की आवश्यकता होती है: प्रयोगशालाओं की गुणवत्ता, मानव संसाधनों का प्रशिक्षण, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के स्तरों के बीच रेफरल प्रणाली, उपकरणों की सेवा और आपूर्ति श्रृंखला।
यह सामर्थ्य में भी मदद कर सकता है, क्योंकि यह उद्योग शायद देश में सस्ते निदान की तरफ मार्गदर्शन कर सकता है।
निदान प्रणालियों के विकास को प्राथमिकता दिए बिना, यह सुधार नहीं किया जा सकता है। सरकार के मंत्रालयों द्वारा अपनी निदान प्रणालियों को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए यह पहला कदम है। हमारा मानना है कि एनईडीएल यह स्पार्क हो सकता है।
हृदय रोग भारत में मृत्यु का प्रमुख कारण बन गया है, क्या आप बीमारी के बदलते बोझ पर टिप्पणी कर सकते हैं?
अब्दुल-अजीज: कई वर्षों से, हृदय रोगों को अमीरों के रोग के रूप में देखा गया हैं। इसकी वजह से, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हृदय रोगों पर कम ध्यान दिया गया है। दुनिया में मौत के कारण की सूची पर हृदय रोग कैंसर और गैर-संचारी रोग जैसे कि एचआईवी / एड्स, तपेदिक और मलेरिया की तुलना में अागे बढ रहा हैं।
भारत में यह परिवर्तन बहुत स्पष्ट रहा है। 2016 में, लगभग 55 मिलियन लोग बीमारी से प्रभावित थे। भारत में चार में से एक मौत हृदय रोगों के कारण होती है, जिसमें इस्केमिक हृदय रोग और स्ट्रोक 80% जिम्मेदार हैं।
यह महामारी संक्रमण काफी हद तक मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हाइपरलिपिडिमिया जैसे कारकों में वृद्धि के कारण है। दवाओं की तरह, स्वास्थ्य देखभाल वितरण में सुधार के लिए नैदानिक परीक्षण महत्वपूर्ण हैं। एनईडीएल होने से हृदय रोगों के निदान और प्रबंधन में मदद मिल सकती है।