दीर्घायु माता – पिता के बच्चों में कैंसर होने की संभावना कम

जून 12, 2013
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पृष्ठभूमि में अपने बेटे और बेटी के साथ मुस्कुराते हुए एक बूढ़े आदमी के closeup चित्र. (शेयर छवि)एन आर्बर — जिनके माता- पिता एक लंबे समय तक जिवित रहते है उनके संतानो को कैंसर और उम्र से जुड़े अन्य आम बीमारियाँ होने का खतरा कम होता हैं, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के शोधकर्ता का कहना है।

एक्सेटर मेडिकल स्कूल अौर राष्ट्रीय संस्थान स्वास्थ्य अनुसंधान के दक्षिण पश्चिम प्रायद्वीप में एप्लाइड स्वास्थ्य अनुसंधान ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग का नेतृत्व किया। उनके विशेषज्ञों ने पाया कि जिन लोगों के माता-पिता की लम्बी आयु थी उनमे कैंसर होने की संभावना 24 प्रतिशत कम थी। वैज्ञानिकों ने लम्बे उम्र के माता पिता अौर बच्चों की तुलना उनकी पीढ़ी के औसत उम्र तक जीवित बच्चों आौर माता पिता से की।

यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के शोधकर्ता और सह लेखक डॉ. केनेथ लांगा मिशिगन आधारित स्वास्थ्य और सेवानिवृत्ति अध्ययन के एसोसिएट निदेशक है जिसने अध्ययन में इस्तेमाल किया गया डेटा प्रदान िकया।

“इस एकमात्र उपलब्ध विस्तृत लान्जिटूडनल डेटा ने हमें स्वस्थ और लंबे आयु के माता पिता के संभावित स्वास्थ्य लाभ को परिमाणित करने में मदद की,” लांगा ने कहा, जो आंतरिक चिकित्सा, जरा विज्ञान और स्वास्थ्य प्रबंधन और नीति के प्रोफेसर हैं। “यह महत्त्वपूर्ण लाभ जो हमने पाया – कैंसर के खतरे में कमी और लम्बी आयु – इसके लिये अधिक विस्तृत जानकारी के साथ अतिरिक्त जनेटिक अध्ययन की जरूरत हैं ताकि हम माता पिता और उनके स्वस्थ लंबे आयु के बच्चों के बीच के लिंक को निर्धारित कर सके।”

लांगा और उनके सहयोगियों ने 91 साल को दीर्घायु माँ क्लैसफाइ किया और उनकी तुलना 77-91 साल के माताओं से की। लंबे आयु के पिता को 87 साल में वर्गीकृत किया अौर 65-87 वर्षों के औसत के साथ तुलना की। वैज्ञानिकों ने 18 साल के अवधि के दौरान कैंसर के 938 नए मामलों का अध्ययन किया।

टीम में फ्रांस के राष्ट्रीय स्वास्थ्य और चिकित्सा अनुसंधान और आयोवा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ भी थे।

अध्ययन ने पाया कि माता – पिता के 65 साल की उम्र के बाद प्रत्येक दशक पार करने पर संतानो का मृत्यु दर 19 प्रतिशत गिरा। जिनकी मायें 85 से अधिक जीवित थी, उन लोगों के लिए मृत्यु दर 40 प्रतिशत कम था। यह आंकड़ा पिता के लिये 14 प्रतिशत कम था क्योंकि धूम्रपान जैसी प्रतिकूल जीवन शैली पिता में आम हो सकती है।

जराविज्ञान: चिकित्सा विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन ने ९७६४ लोगों को, जो स्वास्थ्य और सेवानिवृत्ति अध्ययन में भाग ले रहे थे, इण्टरव्यू कर डेटा का विश्लेषण किया। यह प्रतिभागी अमेरिका से थे और उनको 1992 से 2010 तक इण्टरव्यू किया गया था। उनसे हर दो साल में बातचीत की गई अौर २०१० में पार्टिसपन्ट सत्तर साल के थे।

“पिछले अध्ययनों से पता चला है कि शतवर्षीयों के बच्चों में हृदय रोग कम होता हैं अौर वो लंबे समय तक जीवित रहते हैं। लेकिन यह पहला मजबूत सबूत है कि दीर्घायु माता – पिता के बच्चों में कैंसर की संभावना भी कम होती है अौर मधुमेह अौर स्ट्रोक का खतरा भी कम होता है,” यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर मेडिकल स्कूल के डॉ. विलियम हेनले ने कहा।

“पिछले अध्ययनों में ये प्रभाव 80 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों में देखा गया है पर यह सुरक्षात्मक परिणाम 65 आयु के माता पिता द्वारा बच्चों को दिया जाता हैं। जाहिर है कि लम्बी आयु के माता पिता के बच्चें कैंसर या किसी भी अन्य रोगों से मुक्त नहीं हैं लेकिन हमारे सबूत से पता चलता है कि दरें कम हैं। हमने यह भी पाया कि जैसे माता – पिता की उम्र बढी, बच्चों में वंशागत प्रतिरोधक क्षमता अौर मजबूत हो गयी। “

यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर मेडिकल स्कूल के अम्बररीश दत्ता जिंहोने इस परियोजना पर काम किया है, और अब भारत में रावेनशॉ विश्वविद्यालय के एशियाई जन स्वास्थ्य संस्थान में है, ने कहा कि अध्ययन में कोई सबूत नहीं है कि यह स्वास्थ्य लाभ सास या ससुर से भी मिलता हैं।

“अपने विवाहित जीवन में जीवनसाथी के साथ एक ही पर्यावरण और जीवन शैली का हिस्सा होने के बावजूद सास या ससुर के परिपक्व उम्र तक पहुँचने का कोई स्वास्थ्य लाभ हैं,” दत्ता ने कहा। “अगर निष्कर्ष सांस्कृतिक या जीवन शैली कारकों से जुडा होता, तो आप इन प्रभावों को कम से कम कुछ मामलों में पति और पत्नी में देखने की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन इसका कोई असर नहीं था।”

डेटा का विश्लेषण करने में टीम ने सेक्स, जाति, धूम्रपान, धन, शिक्षा, बॉडी मास इंडेक्स और बचपन की सामाजिक आर्थिक स्थिति का समायोजन किया। जिनके माता पिता की समय से पहले मृत्यु हो गई (यानी, माताओं की 61 से पहले या पिताओं की 46 से पहले) उन को परिणाम बाहर रखा गया है।

अध्ययन मे कैंसर के विभिन्न उपसमूहों को नहीं देखा गया क्योंकि संख्या ने सटीक अनुमान नहीं दिया। भविष्य के काम के लिये ब्रिटेन के बायोबैंक का प्रयोग करेंगे जिसमें 500,000 प्रतिभागियों का विश्लेषण होता है।

अध्ययन के अन्य सहयोगियों में संस्थान नेशनल डे ला सांते एट डी ला Recherche मेडिकल के डॉ. ज्यां-मारी राबिन, आयोवा विश्वविद्यालय के डॉ. रॉबर्ट वालेस और यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर मेडिकल स्कूल के के डॉ. डेविड मेल्ज़र शामिल थे।

लांगा वीए केंद्र , यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन मेडिकल स्कूल, जरा विज्ञान संस्थान , सामाजिक अनुसंधान संस्थान, नैदानिक प्रबंधन अनुसंधान और सार्वजनिक स्वास्थ्य स्कूल, स्वास्थ्य नीति के लिए संस्थान और अभिनव के लिए में प्रोफेसर है।