दो तिहाई भारतीय बच्चों का समय पर टीकाकरण नहीं होता
एन आर्बर— दो-तिहाई भारत में बच्चों को समय पर टीकाकरण प्राप्त नहीं होता है, जो उन्हें बीमारियों के प्रति अति संवेदनशील बनाता है और उनकी असमय मृत्यु का कारण भी बनता है, मिशिगन युनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है।
मिशिगन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा किए गए अनुसंधान दिखाता हैं कि में इस बात का खुलासा हुआ है कि सरकार से मदद प्राप्त टीकाकरण अभियान के तहत सिर्फ 18 प्रतिशत बच्चों को डीपीटी के तीन टीके दिए गये, जबकि 10 महीनों में करीब एक तिहाई बच्चों को खसरे का टीका दिया गया।
यह पहला अध्ययन है जो 5 साल के बच्चों के – टीकाकरण कार्ड के साथ और बिना कार्ड के- समयबद्धता डेटा को देखता है।
‘यह व्यवस्था संबंधी समस्या है,” निजिका श्रीवास्तव ने कहा जिसने हाल में मिशिगन यूनिवर्सिटी से महामारी विज्ञान में डॉक्टरेट की पढाई पूरी की और अध्ययन की मुख्य लेखिका हैं। निजिका फिलहाल स्वास्थ्य एवं पर्यावरण नियंत्रण साउथ कैरोलिना विभाग में हैं। “बताए गए समय के छह महीने बाद बच्चों का टीकाकरण करना बच्चों के रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए नाटकीय रूप से मुश्किल पैदा कर सकता है,” उन्होंने कहा।
यद्यपि भारत टीकों का एक बडा निर्माता एवं निर्यातक देश है, लेकिन यहां पांच साल से नीचे के बच्चों के मरने की तादाद सबसे अधिक है और इनमें से अधिकतर बच्चे टीके से नियंत्रित किए जाने वाले रोगों के शिकार होते हैं।
श्रीवास्तव का कहना हैं कि अच्छा रिकॉर्ड रखने की कमी भी समस्या का हिस्सा है। जब बच्चे का जन्म होता है, माता-पिता को एक टीकाकरण कार्ड दिया जाता है टीकों का ट्रैक रखने के लिए। लेकिन, अगर कार्ड खो गया या गुम गया तो बच्चे का रिकॉर्ड भी खो जाता है।
टीकाकरण के क्षेत्र में वैसे तो भारत टीकों का महत्वपूर्ण निर्माता एवं निर्यातक देश है, लेकिन विडंबना यह है कि दो तिहाई भारतीय बच्चों का समय पर टीकाकरण नहीं हो पाता है।
यू-एम स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में वैश्विक जन स्वास्थ्य के वरिष्ठ सहायक डीन मैथ्यू बूल्टन ने कहा, “भारत में हर साल करीब 2.6 करोड बच्चों का जन्म होता है जो दुनिया के किसी भी देश से अधिक है।”
“हाल में पैदा हुए बच्चों की तादाद अत्यधिक है जिन्हें टीकाकरण की आवश्यकता है जबकि टीकाकरण में देरी के कारण उनसे पहले पैदा हुए बच्चों का भी टीकाकरण नहीं हो पाया है। यह कुछ ऐसा है जैसे आप किसी ट्रेडमिल पर चलने की कोशिश कर रहे हों लेकिन आप लगातार पीछे होते जा रहे हों,” बूल्टन ने कहा।
मिशिगन यूनिवर्सिटी के अनुसार, अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि केवल 12 प्रतिशत बच्चों को नौ महीने के अंदर खसरे का टीका दिया गया, जबकि 75 प्रतिशत बच्चों को यह टीका पांच साल की उम्र तक दिया गया। टीकाकरण में देरी भारत में खसरे की महामारी फैलने का कारण बन सकती है।
“सफलतापूर्वक खसरा को रोकने के लिए लगभग 95 प्रतिशत आबादी में टीकाकरण की आवश्यकता है,” बूल्टन ने कहा जो अध्ययन के वरिष्ठ लेखक हैं। ‘भारत में बचपन के टीकाकरण का दर बहुत कम है जो सफलतापूर्वक रोग के संचरण को नियंत्रित करने के लिये और खसरा से संबंधित मौतों को रोकने के लिए काफी नही हैं । “
अध्ययन में 2008 के जिला स्तरीय घरेलू एवं सुविधा सर्वेक्षण संबंधी आंकडों में तीन वर्ष से कम आयु के करीब २७०,००० बच्चों के टीकाकरण की दर को देखा गया है।
श्रीवास्तव ने कहा कि टीकाकरण के लिये सरकार के पास बुनियादी ढांचा हैं, लेकिन समय के साथ टीके की खुराक पहुंचाने की मंशा कम हो जाती है।
“माता-पिता की जागरूकता और समय पर हस्तक्षेप टीकाकरण के लिए महत्वपूर्ण हो सकता हैं,” उसने कहा।
शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर भारत समय पर टीकाकरण करता हैं तो यह बचपन के टीकाकरण और वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बड़ा असर ड़ाल सकता हैं।
अध्ययन, ‘भारत की सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बच्चों में टीकाकरण समयबद्धता, “पीडीऐट्रिक इन्फेक्शस डिज़ीज़ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। अन्य यू-एम लेखकों में ब्रेंडा गिलेस्पी और जेम्स लिपोसकी शामिल हैं।
अधिक जानकारी:
भारत की सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बच्चों में टीकाकरण समयबद्धता: सार अध्ययन
संबंधित समाचार: ग्रामीण और हिंदू बच्चों के टीकाकरण उच्चतम दर है
मैथ्यू बूल्टन