प्रतिकारक भावनाओं को इच्छाओं में बदलने की क्षमता

फ़रवरी 12, 2013
Contact:

नमक हिलनेवाला से गिरा लवण में काउंटर पर लिखा है. (छवि स्टॉक)एन आर्बर—भूख, प्यास, तनाव, और दवायें मस्तिष्क में परिवर्तन कर प्रतिकारक भावनाअों को मजबूत सकारात्मक “चाहतों” मे बदल देता है, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के एक नए अध्ययन से पता चला है।

अनुसंधान नमक की रुचि को उपयोग कर दिखाता है कि मस्तिष्क की प्राकृतिक क्रियावली कैसे मृत सागर के नमक को जो अरुचिकर है, उसे उत्सुकतापूर्वक चाह या प्रेरक चुंबक में रूपांतरित कर देता हैं।

माइक रॉबिन्सन ने, जो कि यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के मनोविज्ञान विभाग से जुडे और अध्ययन के प्रमुख लेखक है, कहा कि निष्कर्ष इस मुददे की व्याख्या करता है कि लोगो के संबंधित मस्तिष्क कार्यशीलन कैसे उन्हें उस चीज की तरफ खींचता है जो उंहे हमेशा नापसंद था।

उन्होंने कहा कि प्रेरणा को परिवर्तन करने की क्षमता मस्तिष्क सर्कट्री की एक संरचना- जिसे नाभिक एकम्बेंस कहा जाता है – को सक्रिय करता हैं, जो मस्तिष्क के सामने के आधार के पास बैठता है और नशे की दवाओं से भी सक्रिय होता है। पुरस्कार का संकेत अक्सर तीव्र प्रेरणा को सक्रिय करता हैं। भोजन की सुगंध एक व्यक्ति को अचानक भूखा कर देती है जब कि यह पहले नहीं था। नशैली दवाये छोड़ने की कोशिश कर रहे व्यसनी में यह पतन का संकेत हो सकता है। अन्य मामलों में एक अपेक्षाकृत अप्रिय घटना भी इच्छाओं को सक्रिय कर सकता है।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया कि धातु की वस्तुओं का, जो मीठी चीनी या मृत सागर के नमक के खारापन का प्रतिनिधित्व थे, चूहों पर क्या असर था। चूहों ने मिठास क्यू पर जल्दी कूद कर कुतरना सीख लिया, लेकिन नुनखरापन की क्यू से परहेज किया।

लेकिन एक रात पहले दी गई दवाओं के असर से दूसरे दिन चूहों में सोडियम की भूख जाग उठी। इस नये भूखेपन में उनके मस्तिष्क का सिस्टम सक्रिय हो गया और चूहें नमक को चीनी की भातिं कुतरने लगे।

रॉबिन्सन ने कहा कि ” नमक के घृणित स्वाद के बावजूद क्यू की मदद से वह ‘चाह” बन जाता हैं।” मस्तिष्क में यह परिवर्तन इस मुद्दे को दर्शाता हैं कि कैसे एक व्यक्ति नशैली दवाअों के नकारात्मक और अप्रिय परिणामों के बावजूद उन दवाअों को लेता हैं।

“हमारा निष्कर्ष इस मुद्दे को उजागर करता है कि कई बार दवायें हमारे प्राकृतिक इनाम प्रणाली को अपहरण कर लेती है” रॉबिन्सन ने कहा। उनके अध्ययन के साथी केंट बैरिज हैं, जो मनोविज्ञान और तंत्रिका विज्ञान के जेम्स अोलड कॉलेजिएट प्रोफेसर हैं।

यह अध्ययन वर्तमान जीवविज्ञान अंक मेँ प्रकाशित हैं http://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0960982213000195