भारतीय नेता मोदी की आगामी अमेरिकी यात्रा: यू-एम विशेषज्ञ चर्चा कर सकते हैं
मिशिगन यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ 25-26 जून को भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा पर टिप्पणी करने के लिए उपलब्ध हैं। मोदी पहली बार राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ मिलेंगे और कई यू.एस. के सीईओ के साथ भी मीटिंग करेंगे।
पुनीत मनचंदा — रॉस स्कूल ऑफ बिजनेस में विपणन के प्रोफेसर हैं। उनकी विशेषज्ञता उभरते क्षेत्रों के बाजार, भारत में व्यापार, और रणनीति और विपणन के मुद्दें हैं।
“प्रधान मंत्री मोदी की यात्रा दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों के रीसेट के रूप में देखा जा रहा है,” उन्होंने कहा।
“व्हाइट हाउस में नए प्रशासन को देखते हुए, भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि भारत में निवेश, विशेष रूप से रक्षा और ऊर्जा से संबंधित, में नाटकीय रूप से बदलाव नहीं होगा।”
“यह भी लगता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने विदेशी नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की है और इस यात्रा के दौरान प्रधान मंत्री मोदी इन संबंधों की नीव रखेंगे।”
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अरुन अग्रवाल प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण के प्रोफेसर हैं। वे विकास के राजनीतिक अर्थशास्त्र, संसाधन उपयोग और प्रबंधन, जलवायु अनुकूलन और संस्थागत विश्लेषण के विशेषज्ञ हैं।
उन्होंने कहा, “भारत की सौर और हवा अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में महत्वाकांक्षी मूव उसे एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी बनाता हैं,” उन्होंने कहा। “जो लोग जलवायु परिवर्तन और सस्टैनबिलिटी की परवाह करते हैं, वे प्रधान मंत्री मोदी की यात्रा के बारे में उत्साहित होंगे। भारत के भविष्य की योजनाओं में इलेक्ट्रिक कारों में आगे बढ़ने और अधिक सस्टैनबिलिटी हासिल करने के लिए डिजिटल नवाचार और साझेदारी की आवश्यकता होगी।”
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एम एस कृष्णन, रॉस स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रौद्योगिकी और संचालन के प्रोफेसर हैं। वे रॉस स्कूल ऑफ बिजनेस में ग्लोबल इनिशटिव के असोसीअट डीन हैं अौर विभिन्न सूचना प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर मुद्दों के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने भारत में व्यवसायों पर शोध किया है।
“प्रधान मंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प दोनों व्यापार के समर्थक हैं और दोनों अपने अर्थव्यवस्थाओं के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं,” उन्होंने कहा। “”मुझे उम्मीद है कि वे उन नीतियों और पहलों की चर्चा करेंगे जो दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को और अधिक समृद्ध करेगा। निश्चित रूप से भारतीय पक्ष प्रधान मंत्री मोदी की “मेक इन इंडिया” पहल में अमेरिकी कंपनियों के भाग लेने अौर गैर-आव्रजन वीजा के मुद्दे पर बात करेंगे। मुझे यकीन है कि अमेरिका के नजरिए से भारत में अमेरिकी कंपनियों के लिए और अवसरों को खोलने पर चर्चा होगी। “
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निकोलस मोरेल्स, अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट छात्र हैं। वे आईटी बूम के दौरान अमेरिकी कम्प्यूटर वैज्ञानिकों की भर्ती के आर्थिक प्रभाव का अध्ययन करते है। मोरालेस और यू-एम के अर्थशास्त्री जॉन बाउंड ने पाया कि इस कार्यक्रम का श्रमिक, उपभोक्ताओं और तकनीकी कंपनियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है – “कौन उच्च कुशल विदेशी श्रमिकों से सबसे अधिक लाभ उठाता है?”
उन्होंने कहा, “भारतीय कंप्यूटर वैज्ञानिक एच -1 बी वीसा का सबसे बडा हिस्सा लेते हैं और पिछले 20 वर्षों से यू.एस. आईटी सेक्टर में श्रमिकों की कमी को भरते है। इसके अलावा, यू.एस. में कार्यरत भारतीय आईटी कंपनियां भी एच -1 बी प्रोग्राम का इस्तेमाल कर उच्च-कुशल श्रमिकों को यू.एस. लाती हैं।
“दोनों देशों के व्यापार और बहुराष्ट्रीय गतिविधियों के माध्यम से और एच -1 बी श्रमिकों पर दोनों देशों की निर्भरता इसे चर्चा का विषय बनाता है।”
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लीला फर्नांडीस, राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर हैं। वे राजनीति और संस्कृति के बीच संबंधों का अध्ययन करती हैं, और भारत में श्रमिक राजनीति, लोकतंत्रीकरण और आर्थिक सुधार की राजनीति पर शोध करती है।
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