भारत में कलात्मक सक्रियता
एन आर्बर- मेरेडिथ स्टार्कमेन कहती हैं कि उसके जीवन का सबसे भावनात्मक अनुभव एक रियो डी जनेरियो के अस्पताल में हुआ जब वो शिक्षा के लिये विदेश की यात्रा पर थी। वो अस्पताल में कीमोथेरेपी के रोगियों को खुश करने के लिए ब्राजील के कलाकारों के एक समूह के साथ गई थी।
मिशिगन यूनिवर्सिटी की छात्र ने रोगियों को एक उत्साहपूर्ण दर्शक होने की उम्मीद नहीं रखी थी। लेकिन जैसे ही जैसे ही उसके समूह ने गाना शुरू किया, मरीज उठ के गाने लगे।
उन्होनें स्टार्कमेन और उनके साथियों को ” स्टैन्ड बाय मी” गाने के मिये कहा।
“मैं वास्तव में काफी भावुक हो गई,” उसने कहा। “वे कभी-कभी तीन या चार घंटे के लिये वहाँ बैठते हैं। वास्तव में उनके लिये कुछ करना और उनका सराहना वास्तव में प्यारा था।”
इस अनुभव ने स्टार्कमेन के “कलात्मक सक्रियता” के विश्वास को और भी गहरा कर दिया है। इसने वॉलेनबर्ग फैलोशिप के अगले प्राप्तकर्ता के रूप में उसके योजनाओं को भी प्रेरित किया। यह पुरस्कार हर साल एक असाधारण प्रामिस और उपलब्धि वाले स्नातक को दिया जाता है।
फैलोशिप स्टार्कमेन को ग्रेजुएशन के बाद दुनिया में कहीं भी इन्डिपेन्डन्ट प्राजेक्ट करने के लिये 25,000 डालर देता हैं। वह भारत जाकर संगीत, नृत्य, रंगमंच और दृश्य कला का उपयोग कर लोगों के जीवन में सुधार के साथ काम करने की योजना बना रही है। एक साल के फैलोशिप के दोरान वो मुंबई, कोलकाता और बंगलुरू में रहेंगी और वहा के संगीत, नृत्य, रंगमंच और दृश्य कला समूहों के साथ काम करेंगी।
यह स्टार्कमेन के लिये भारत की पहली यात्रा होगी, और वो उत्साहित और डरी हुई है। “मुझे अकेले होने का सबसे अधिक डर है,” स्टार्कमेन ने कहा जिसने थिएटर प्रदर्शन में बीएफए हासिल किया है।
“मैं पहले कभी एक अनजान देश में लंबे समय तक नहीं रही हूँ। लेकिन जो कोई भारत मे किसी को भी पँहचानता है, उसने मुझे नाम दिये है। यह सिर्फ मेरे लिये मेरी राह खोजने का मामला है।”