भारत में बढ़ती अनुदारता

नवम्बर 18, 2015
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फैकल्टी क्यू एंड ए

भारत में कई लेखकों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और फिल्मकारों ने देश में असहिष्णुता के माहौल का विरोध किया हैं।

कार्यकर्ताओं की हत्या और गो मांस सेवन के संदेह पर एक आदमी के कत्ल के विरोध में 40 से ज्यादा लेखकों और 50 इतिहासकारों ने राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कार लौटा दिये है।

पिछले हफ्ते, बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान भी है इस आंदोलन में शामिल हो गए जब उन्होनें एक इन्टर्व्यू में कहा कि “भारत में असहिष्णुता बढ़ रही है।”

लीला फर्नांडीस ने, जो मिशिगन यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान और वुमन स्टडीज़ की प्रोफेसर हैं, स्थिति पर चर्चा की:

प्रश्न: क्या आप भारत में बढ़ती अनुदारता की व्याख्या कर सकती हैं?

फर्नांडीस: हम सभी देख रहे हैं कि यह क्या रूप लेगा। मेरे दृष्टिकोण से, यह चिंता का विषय है कि नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के चुनाव के बाद से, अल्पसंख्यकों के खिलाफ कम ग्रेड की हिंसा हुई है। यह लो ग्रेड हैं ताकि दुनिया का ध्यान इसपर ना पढे ।

पिछले साल र्चचों पर हमलें हुये थे और धार्मिक अंतर्जातीय (हिंदू महिलाओं और मुस्लिम पुरुषों के बीच) विवाह के खिलाफ भी एक अभियान चला था। इस साल, हिंसा बढ़ रही है और उदाहरण के तौर पर गो मांस सेवन के संदेह पर एक आदमी की हत्या कर दी गई। ये स्थानीय स्तर के हिंसा के आकस्मिक मामले नहीं हैं। यह बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा की एक पद्धति को फौलो नहीं करते हैं, लेकिन यह अनियमित भी नहीं हैं।

देखने पर अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के खिलाफ एक पैटर्न उभरता हुआ दिखता हैं। यह गंभीर है क्योंकि धर्म की स्वतंत्रता की सुरक्षा और लोकतांत्रिक अधिकार एक बुनियादी मुद्दा है।

प्रश्न: जनता ने इसका विरोध किया है और कई लेखकों और इतिहासकारों ने राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कार भी लौटा दिये हैं। यह कितना महत्वपूर्ण है?

फर्नांडीस: यह विरोध महत्वपूर्ण हैं। हिंसा प्रकृति में बिखरी हुई है, और जनता और मीडिया की स्मृति से जल्दी चला जाता है। मोदी के चुनाव से एक गंभीर राजनीतिक परिवर्तन आया है, यह समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह निराशाजनक बदलाव बौद्धिक और सांस्कृतिक जीवन में दिखाई दे यहा हैं जैसे कि कुछ शिक्षण संस्थानों में और सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं पर बलपूर्वक नियंत्रण में भी।

प्रश्न: क्या भारत हमेशा धर्मनिरपेक्ष रहा है?

फर्नांडीस: भारत में धर्मनिरपेक्षता पर विचार हमेशा तनावपूर्ण रहा है। विभाजन के दौरान हिंसा के बाद से समय-समय पर धार्मिक हिंसा देखी गई है।

लेकिन 1980 के बाद, राइट विंग हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन ने भारतीय राजनीति की मुख्यधारा को बदल दिया। अचानक, धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ उत्तेजक राजनीतिक बयानबाजी सामान्य हो गई।

प्रश्न: एक लेख ने कहा हैं कि भारत”हिंदू पाकिस्तान” होता जा रहा है। यह कितना सही है?

फर्नांडीस: हमें अन्य देशों से तुलना से पहले सोचना चाहिये।

भारत में स्थिर लोकतंत्र हैं, मजबूत आंदोलन हैं, और बहुत साहसी लेखकों, फिल्मकारों और वैज्ञानिकों का समूह हैं जो अपनी राय व्यक्त करता से शर्माता नहीं हैं।

यहाँ पर मजबूत अदालतें और धर्मनिरपेक्ष नागरिक समाज संगठने भी हैं तो “हिंदू पाकिस्तान” जैसी धारणा उन लोगों के साथ न्याय नहीं करता जो इस धार्मिक असहिष्णुता और हिंसा से लड़ रहे हैं।

संपर्क करे: फर्नांडीस: 734-780-7514, leelaf@umich.edu