ये मोबाइल ऐप दिखाता हैं दुनियाभर के नींद का पैटर्न

Bar chart showing age and gender comparisons.एन आर्बर- एक दुनिया भर में सोने की प्रवृत्ति के अध्ययन ने गणित मॉडलिंग, मोबाइल एप्लिकेशन और बिग डेटा का इस्तेमाल करके लोगों के सोने के समय के पैटर्न का पता लगाया है।

अध्ययन ने, मिशिगन यूनिवर्सिटी के गणितज्ञों के नेतृत्व में, एक नि: शुल्क स्मार्टफोन एप्लिकेशन को इस्तेमाल करके, 100 देशों के हजारों लोगों के नींद के डेटा को इकट्ठा किया। शोधकर्ताओं ने फिर जांच की कि आयु, लिंग, प्रकाश और देश विश्व भर के लोगों के सोने और जागने को कैसे प्रभावित करते है।

उन्होंने पाया कि सांस्कृतिक दवाब लोगों के शरीर की प्राकृतिक घड़ी को प्रभावित करता है, जिसका नतीजा सबसे ज्यादा बिस्तर पर नजर आता है। सुबह के काम जैसे कार्यालय, घर, बच्चे, स्कूल आदि लोगों के जगने के समय पर गहरा असर डालते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि नींद पर असर डालने के अलावा इनके कई अन्य कारण भी हैं।

Chart showing geographic and hourly data.मिशिगन विश्वविद्यालय की कॉलेज ऑफ लिटरेचर, साइंस एंड आर्ट्स के डेनियल फोर्जर का कहना है, “सभी देशों में यह देखा गया कि समाज ही हमारी नींद को निर्धारित करता है और देर से बिस्तर में जाने का नतीजा नींद में कमी के रूप में सामने आता है। हमारी शारीरिक व्यवस्था हमें सुबह जल्दी उठने को कहती है, इसके बीच में हमारी नींद कुर्बान हो रही है। इसी से दुनिया भर के देशों में नींद को लेकर संकट बढ़ रहा है।”
जब फोर्जर आंतरिक या जैविक घड़ियों के बारे में बात करते है, वह सिर्केडियन क्लॉक की तरफ इशारा कर रहे हैं, जो 24 घंटे के दिन के उतार चढ़ाव से बंधा हैं।

ये लय आंखों के पीछे के 20,000 न्यूरॉन्स क्लस्टर से जुडा हैं जो एक चावल के दाने के आकार का हैं। वे हमारी आँखों के लिये प्रकाश, विशेष रूप से सूर्य के प्रकाश को विनियमित करते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन के शोधकर्ताओं ने वर्ष 2014 में एंट्रेन ऐप जारी किया था जिसका मकसद लोगों को जेटलैग से राहत दिलाना था।

इस ऐप को इस्तेमाल करने वाले लोगों को विकल्प दिया गया था कि वो अपने सोने के समय के बारे में जानकारी शोधकर्ताओं से साझा कर सकते हैं।

गणित विभाग की डॉक्टोरल छात्रा ओलिविया वाल्स कहती हैं, “ज्यादातर लोग जितना समझते हैं, नींद उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर आप रात में छह घंटे भी नींद लेते हैं तो आप नींद की कमी से जूझ रहे हैं।”
इस एप से मिले आकंड़ों से शोधकर्ताओं ने पाया कि सिंगापुर और जापान के लोगों के सोने का राष्ट्रीय औसतन सात घंटे 24 मिनट के आसपास है, जबकि नीदरलैंड के लोगों की नींद का औसत आठ घंटे 12 मिनट है।
नींद में ख़लल का रिश्ता टाइप 2 डायबिटीज़ जैसी बीमारियों से बताया गया है।

यू-एम शोधकर्ताओं ने यह भी पाया गया कि:

  • मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों से कम नींद आती है, अक्सर उनको 7 से 8 घंटे से भी कम समय मिल रहा है।
  • 30 से 60 साल के बीच की महिलाएं पुरुषों से तीस मिनट ज़्यादा समय बिस्तर में बिताती हैं।
  • जो लोग सूरज की रोशनी में कुछ समय रोजाना रहते हैं, वे बिस्तर में जल्दी जाते हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि हरेक आधे घंटे की नींद हमारे शरीर की प्रणाली और दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती है। वाल्स कहती हैं, “अगर आप लगातार ज्यादा दिनों तक नींद की कमी से जुझते हैं तो यह आपके शरीर पर गहरा असर डालता है।”
“यह नागरिक विज्ञान के एक शांनदार जीत है,” फोर्जर ने कहा।

यह काम सेना अनुसंधान प्रयोगशाला, वायु सेना वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यालय और राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित है।

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डेनियल फोर्जर
ओलिविया वाल्स