बत्ती गुल: भारत में राजनीति और बिजली के बीच चौंकाने वाला लिंक

अप्रैल 23, 2014
Contact:

एक Bulding कलकत्ता कोलकाता भारत में इलेक्ट्रिक सर्किट. छवि क्रेडिट: विकिपीडिया के माध्यम से जॉर्ज रोयन (खुद के काम) [CC-BY-SA-3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)],एक Bulding कलकत्ता कोलकाता भारत में इलेक्ट्रिक सर्किट. छवि क्रेडिट: विकिपीडिया के माध्यम से जॉर्ज रोयन (खुद के काम) [CC-BY-SA-3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)],एन आर्बर: हर साल भारत में एक तिहाई बिजली गवाँया जाता है। यह बिजली भेजा तो जाता है पर बिल नहीं किया जाता। कुछ चोरी होता हैं अौर कुछ तकनीकी समस्याओं की वजह से गायब हो जाता है। इस बिजली से पूरे इटली को एक वर्ष तक रोशन किया जा सकता है।

यह समस्या चुनावों के दौरान विशेष रूप से बढ़ जाता है जब बिजली वोट जीतने के लिए यूज़ किया जाता है , एक नये यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन के अध्ययन से पता चलता है। अनुसंधान ने ध्यान केंद्रित किया भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश पर अौर पाया कि चुनावों से पहले बिजली का नुकसान तीन प्रतिशत बढ़ा गया।

“हमारा पेपर बिजली के नुकसान पर एक राजनीतिक विवरण प्रदान करता है और यही कारण है कि यह चोरी सबके सामने हो रही है ,” ब्रायन मिन ने कहा जो राजनीतिक विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर है। “संक्षेप में, निर्वाचित राजनीतिक नेताओं को चुनाव में फायदा होता हैं जब उनके कन्स्टिचूअन्ट को अधिक बिजली प्राप्त होती हैं। “

यह शोध दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की दो बड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालता हैं – बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर। दोनों अक्सर भारत की अर्थव्यवस्था के हाल की मंदी के लिए दोषी ठहराये जाते है अौर इस चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा भी हैं।

मिन ने कहा कि िजन क्षेत्रों में बिजली का नुकसान बढ़ने दिया गया उन क्षेत्रों में अवलंबी उम्मीदवारों के चुनाव जीतने की संभावना बढ़ गई।

“सिर्फ तकनीकी और आर्थिक कारण बिजली के नुकसान की व्याख्या नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इसमें राजनीतिक कारण भी शामिल हैं,” मिन ने कहा जिसने उत्तर प्रदेश के 2002 और 2007 के चुनावों से डेटा का विश्लेषण किया।

मिन ने कहा कि उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड जैसे बिजली की कंपनियां राजकीय स्वामित्व वाली हैं , अौर वो निर्वाचित अधिकारियों के हितों की तरफ अनुग्रहीत होती हैं।

उत्तर प्रदेश में 1970-2010 के दौरान भेजे गये बिजली से 29 प्रतिशत को बिल नही किया गया। इसके अलावा कई नीतिगत हस्तक्षेप, नियामक सुधारों और बिजली चोरी पर मुकदमा चलाने के लिए प्रयासों के बावजूद बिजली का नुकसान १९७० की तुलना में आज ज्यादा हैं।

बिजली की हानियां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक थी जहाँ मजबूत राजनीतिक परिवारों के घर हैं। हाथरस और मैनपुरी जिलों में लगभग 50 प्रतिशत बिजली गवाँया जाता या बिल नहीं किया जा रहा है। इसके विपरीत सबसे कम या 13.6 प्रतिशत बिजली का लौस गौतम बुद्ध नगर में हैं जिसमे नोएडा शामिल है जहाँ कई बहुराष्ट्रीय कंपनी के कार्यालय हैं।

अध्ययन के अनुसार, वोट जीतने की जरूरत अकसर व्यवस्थित चुनौतियों को अनदेखा कर देती है जिसे हल करने के लिए पैसे और समय लगता हैं।

” पालिटिशन चुनावों के समय अपने क्षेत्रों को अधिक बिजली प्रदान करते हैं,” मिन ने कहा। “लेकिन बिजली के संकट को दूर करने अौर नये ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के लिए आवश्यक निवेश करने में सक्षम नहीं हो पाये है। “

” भारतीयों की सबसे बड़ी चिंता बुनियादी चीजें है ,” मिन ने कहा “जैसे बिजली , सड़क और पानी। “