पशुओं में स्वयं चिकित्सा पहले की तुलना में व्यापक अौर विस्तृत
एन आर्बर: यह आम खबर है कि चिम्पांजी जैसे जानवर औषधीय जड़ी बूटियों की तलाश कर अपने रोगों का इलाज करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, पशु फार्मासिस्ट की सूची बहुत लंबी हो गयी है, और यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन विज्ञानी और उनके सहयोगियों के अनुसार पशुअों में स्वयं दवा लेने का अभ्यास भी अधिक हुआ हैं।
पशु द्वारा विभिन्न रोगों के इलाज के लिये दवाअों का उपयोग दो तरीके से होता हैं, एक – दूसरे जानवरो से सीखा हुआ और दूसरा – अंतर्जात सीखा हुआ। पतिंगे, चींटियों, और फल मक्खियों स्वयं इलाज के लिए जानी जाती है और इसका मेजबान पशु और उनके परजीवी के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है, पारिस्थितिकीय और विकासवादी जीवविज्ञान विभाग में प्रोफेसर मार्क हंटर ने कहा।
क्योंकि पौधें भविष्य की दवाइयों के लिये सबसे आशाजनक स्रोत हैं, पशु द्वारा चिकित्सा का अध्ययन मानवीय पीड़ा से राहत के लिए अौर नई दवाओं की खोज में मदद कर सकता हैं, हंटर और उनके दो साथियों ने एक समीक्षा लेख में कहा जिसका शीर्षक है “पशु में स्वयं दवा”। यह ऑनलाइन साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ।
“जब हम जानवरों को भोजन की खोज में घूमते हुये देखते हैं, हमें पूछना चाहिये कि वे किराने की दुकान पर हैं या फार्मेसी का दौरा कर रहे हैं?” हंटर ने कहा। “हम अन्य जानवरों को देखकर परजीवी और रोग के इलाज के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं।”
इस क्षेत्र में काम ज्यादातर बबून्स और इल्ली पर केंद्रित किया गया है। हाल ही में एक अध्ययन में देखा गया हैं कि गौरैयों और फिन्चेस अपने घोंसलों में उच्च निकोटीन वाले सिगरेट के टुकडें रख कर घुन का संक्रमण कम करते हैं।
लेकिन जानवर अपने वंश या अन्य जानवरों को कैसे औषधि देते हैं, इस पर कम ध्यान दिया गया है, हंटर ने कहा। जंगली चींटियां अपने घोंसलों में माइक्रोबियल विकास को रोकने के लिये शंकुवृक्ष पेड़ से सूक्ष्मजीवीरोधी राल शामिल करते हैं, परजीवी संक्रमित मोनार्क बटरफ्लाइ परजीवी विकास रोकने के लिये मिल्कवीड पौधे पर अपने अंडे बिछाके अपने वंश की रक्षा करती हैं।
हंटर और उनके सहयोगियों का इस क्षेत्र में काम कर रहे शोधकर्ताओं को सुझाव है कि “स्वयं दवा में ‘स्व’ पर जोर ना देकर एक अधिक समावेशी रूपरेखा अपनाना चाहिए।
“हमारे लिए सबसे बड़ा आश्चर्य था कि फल मक्खियों और तितलियों भी अगली पीढ़ी में रोग के प्रभावों को कम से कम के लिए भोजन का चयन करती हैं,” हंटर ने कहा। “इसका एपिजेनेटिक्स क्षेत्र के साथ मजबूत समानताएं हैं। हम जानते हैं कि माता पिता द्वारा आहार में विकल्पों का बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पडता हैं।”
लेखक का तर्क है कि पशु द्वारा चिकित्सा का मेजबान- परजीवी पारस्परिक क्रिया और पारिस्थितिकी विकास पर प्रभाव पडता हैं। जब जानवर दवा लेकर परजीवी को कम कर देते है, वहाँ परजीवी संचरण या उग्रता पर सुस्पष्ट प्रभाव होना चाहिए।
हंटर और उनके सहयोगियों के अनुसार पशु द्वारा चिकित्सा उनके प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास को भी प्रभावित करता हैं। मधुमक्खियाँ अपने घोंसलों में रोगाणुरोधी रेजिन शामिल करने के लिए जानी जाती है। मधुमक्खियों के जीनोम के विश्लेषण से पता चलता है कि उनमें अन्य कीड़ों की तुलना में प्रतिरक्षा प्रणाली जीन की बहुत कमी है। संभावना है कि मधुमक्खियों में दवा का प्रयोग इसके लिये जिम्मेदार है या वो प्रतिरक्षा तंत्र के मुआवजा की स्थापना करता है।
लेखक इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि पशु के दवा के अध्ययन के साथ मानव खाद्य उत्पादन का सीधा संबद्ध हैं। जब मनुष्य पशुओं की क्षमता के साथ हस्तक्षेप करते हैं तो कृषि जीवों में रोग की परेशानियाँ अौर बढ जाती हैं।
उदाहरण के लिए, मधुमक्खियों में परजीविता रोग बढ़ जाता है जब मधुमक्खी पालक मधुमक्खियों के द्वारा कम राल जमा करने का चयन करते है। प्रबंधित मधुमक्खी कालोनियों में इस तरह के रेजिन के पुनः प्रस्तुति से रोग प्रबंधन में लाभ होगा, लेखक कहते हैं।
साइंस पेपर के पहले लेखक एमोरी विश्वविद्यालय के जेकबस डी रूड है। अन्य लेखक फ्रांस में इन्स्टिटूट डी रेशएछ ले डिवेलप्मन्ट के थियरी लेफेवर है।
संबंधित लिंक:
मार्क हंटर: http://www.lsa.umich.edu/eeb/directory/faculty/mdhunter