भारतीय विश्वास करते हैं कि अंग या रक्त दान व्यक्तित्व को बदल सकता हैं

जुलाई 5, 2013
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भारतीय विश्वास करते हैं कि अंग या रक्त दान व्यक्तित्व को बदल सकता हैंएन आर्बर– यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के एक नये अध्ययन के अनुसार, कुछ लोग हत्यारें या चोर से आये अंग या रक्त को नापसन्द कर मना कर देते हैं।

वे चिंता व्यक्त करते हैं कि दान के परिणामस्वरूप उनका व्यक्तित्व या व्यवहार बदल कर दाता की तरह हो सकता है।

प्राप्तकर्ता ऐसे दाता से अंग या डीएनए प्रत्यारोपण या रक्त प्राप्त करना पसंद करते हैं जिनका चरित्र या व्यवहार उनसे मैच करता हो, मेरेडिथ मेयेर, अध्ययन की प्रमुख लेखक और मनोविज्ञान अनुसंधान फैलो ने कहा। लोगों को लगता है कि व्यवहार और व्यक्तित्व आंशिक रूप से रक्त या शारीरिक अंगों के अंदर छिपा होता हैं, उंहोने कहा।

मेयर और उनके सहयोगियों यह देख कर हैरान थे कि यह परिणाम मजबूत था चाहे वो रक्ताधान हो या हृदय प्रत्यारोपण।

अध्ययन ने पेसमेकर, त्वचा ग्रैफ्ट और दिल प्रत्यारोपण के विश्वासों की तुलना संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के प्रतिभागियों में की। शोधकर्ताओं का कहना हैं कि भारतीयों में प्रत्यारोपण के बारे में मान्यतायें अधिक मजबूत थी। दोनों देशों से उत्तरदाताओं ने नकारात्मक लक्षण वाले दाताओं अौर जानवरों से प्रत्यारोपण को नापसन्द किया लेकिन भारतीय में अमेरिकियों की तुलना में यह यकीन मजबूत था कि प्रत्यारोपण उनके व्यवहार को प्रभावित करती है।

“रक्त संचारण तो आम और सरल हैं, इसलिए हम लोगों ने सोचा था कि इस पर कुछ खास असर नहीं होगा,” मेयर ने कहा।

“यह एक दिलचस्प विश्वास है कि व्यवहार और व्यक्तित्व निहित, अपरिवर्तनीय पहलू हैं अौर वो बदलते नही है,” अध्ययन की सह लेखिका सुसान गेलमन, मनोविज्ञान की हेंज वर्नर कॉलेजिएट प्रोफेसर ने कहा।

अध्ययन में प्रतिभागियों ने संभव मानव दाताओं की सूची देखी और उम्र, लिंग, यौन अभिविन्यास और पृष्ठभूमि जैसे लक्षण देखकर निर्णय किया। संभावित दाताओं में भी दो जानवर भी शामिल थे: सुअर या एक चिंपांज़ी। मानव दाता जो एक ही लिंग के थे, उनके लक्षण सकारात्मक (जैसे, उच्च बुद्धि, प्रतिभाशाली कलाकार, दयालु व्यक्ति या परोपकारी) या नकारात्मक (जैसे, कम बुद्धि, चोर, जुआरी या कातिल) हो सकते थे।

उत्तरदाताओं ने डोनर बनने की धारणा को रैंक किया अौर साथ ही प्रत्यारोपण पर अपने विश्वासों का मूल्यांकन किया कि दान के परिणामस्वरूप उनका व्यक्तित्व या व्यवहार बदल कर दाता की तरह हो सकता है। प्रश्न में प्रत्यारोपण को “नापसन्द करना” या प्रत्यारोपण से “दूषित” महसूस करना भी शामिल किया गया था।

निष्कर्ष से यह महत्वपूर्ण संकेत मिलता है कि लोग सकारात्मक या नकारात्मक गुणों की तुलना में खुद की तरह व्यक्ति को दाता के रूप में अधिक पसंद करते है। जानवरों से प्रत्यारोपण विशेष रूप से अरुचिकर थे।

“लोग अपने तत्व में किसी भी तरह के परिवर्तन की संभावना को नापसंद करते है चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक। इसलिए दाता और प्राप्तकर्ता के बीच किसी भी तरह के अंतर से प्रत्यारोपण पर विरोध हो जाता है (इस तथ्य के बावजूद) कि कोई वैज्ञानिक मॉडल इसका स्पष्टीकरण नही करता हैं कि प्रत्यारोपण से लक्षण बदल जाते हैं, “मेयर ने कहा।

यह विश्वास दिलचस्प है विशेषकर जब जानवरों से अंग की प्रत्यारोपण की संभावना आती हैं,” अध्ययन की सह लेिखका सारा जेन लेस्ली, प्रिंसटन विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की सहायक प्रोफेसर, ने कहा।

“चिकित्सा के दृष्टिकोण से, यह दाता की कमी को संबोधित करने की शुरुआत है,” लेस्ली ने कहा, “लेकिन इन परिणाम से संकेत मिलता है कि संभावित प्राप्तकर्ताओं भी दान स्वीकार करने में संघर्ष कर सकते है।”

यह निष्कर्ष संज्ञानात्मक विज्ञान जर्नल में प्रकाशित हुआ हैं। अध्ययन की अन्य लेिखका यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की सारा स्टिलविल है।