रेगुलर सोडा दिजिए: चीनी और आर्टफिशल स्वीटनर के बीच अन्तर करने वाला हार्मोन मनुष्यों में मौजूद हो सकता है

Monica DusMonica Dusएन आर्बर – हम सबने यह किया हैं: कम कैलोरी की कई कुकीज़ खाने के 15 मिनट बाद हमने फिर से और कुछ खाया।

इसकी व्याख्या के लिए एक सिद्धांत यह हैं कि आर्टफिशल स्वीटनर में कैलोरी या ऊर्जा नहीं हैं जिसकी मस्तिष्क उम्मीद करता है तो दिमाग को भूख से संतोष नही मिलता हैं। अब तक, यह समझ नही थी कि कोई जीव चीनी और आर्टफिशल स्वीटनर के बीच कैसे भेद कर सकता हैं।

अब, मिशिगन यूनिवर्सिटी की एक शोधकर्ता ने ढूंढा लिया हैं कि फल मक्खी का दिमाग दोनों के बीच कैसे अन्तर करता है।

यह आणविक मशीनरी बड़े पैमाने पर इंसानों के आंत और दिमाग में मौजूद है, इसलिये मोनिका दस, जो उ -एम के आणविक, सेलुलर, और विकासात्मक जीव विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं, का मानना हैं कि मानवों का दिमाग भी इसी तरह से अन्तर कर सकेगा।

फल मक्खियाँ और मनुष्य लगभग 75 प्रतिशत रोग के जीन शेअर करते है, दस ने कहा जो, न्यूरॉन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन की पहली लेखका हैं।

“हम पूछ सकते हैं कि क्या यह इन जीन मनुष्यों में भी चीनी और आर्टफिशल स्वीटनर के बीच अन्तर बताने का काम कर सकते हैं?”, दस ने कहा।

“कुछ अंश और टुकड़े मौजूद हैं तो यह वास्तव में संभव है। हमें पता था कि आदमी का मस्तिष्क असली और नकली चीनी के बीच अंतर बता सकता है, लेकिन हमें पता नही था कि कैसे।”

दस और उनके सहयोगी – न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय मेडिसिन स्कूल के ग्रेग सू और जेसन लाइ – ने फल मक्खियों को कई घंटे तक भोजन से वंचित किया और फिर उन्हें डाइअट मिठास और असली चीनी के बीच चुनने का विकल्प दिया। जब मक्खियों ने चीनी को चखा तो छह न्यूरॉन्स के एक समूह सक्रिय हुआ जिसने फिर एक हार्मोन रीलीस किया जिसके पेट और मस्तिष्क में रिसेप्टर्स है।

हार्मोन ने पाचन शुरू कर मक्खी को और पौष्टिक भोजन चाटने की अनुमति दी। दूसरी ओर जब मक्खी ने आर्टफिशल स्वीटनर को चखा तो इस हार्मोन / पाचन प्रतिक्रिया का उत्पादन नहीं हुआ क्योंकि शून्य कैलोरी के स्वीटनर में कोई पोषण या ऊर्जा नही हैं।

हर केस में, मक्खियों ने आर्टफिशल स्वीटनर को छोड कर कर असली चीनी को चुना क्योंकि भूखे मक्खियों को ऊर्जा प्रदान करने वाली कैलोरी की जरूरत थी।

विकासवादी दृष्टिकोण से, मीठे स्वाद का मतलब चीनी है (जो फल या उच्च केंद्रित कार्बोहाइड्रेट से मिलता हैं) और बाद में ऊर्जा को बढ़ावा देता हैं। फल मक्खियाँ पिज्जा के लिए फोन नहीं कर सकती इसलिए वो नियमित रूप से चीनी चुनती है, दस कहती हैं।

अगर हमारा दिमाग भी इस तरह से काम करता हैं, तो डाइअट फूड से हम संतुष्टी नहीं मिलती और यही वजह है कि परहेज़ करते हुए हमारा वजन बढ़ने लगता हैं, वह कहती हैं।

इसीलिये एक व्यक्ति कम कैलोरी की कई कुकीज़ खाने के बाद भी और खाता रहता है जब तक उसके शरीर की ऊर्जा जरूरतें पूरी नही हो जाती।

फल मक्खियों में लगभग 1,00,000 न्यूरॉन्स है और मानव के मस्तिष्क में 86 अरब। फल मक्खियों के यह छह न्यूरॉन्स मानवों में लगभग एक ही जगह पर है जिससे विशाल अनुमान का काम हट जाता है और शोधकर्ता एक स्थान पर फोकस कर सकते हैं। न्यूरॉन्स असली चीनी पर ही सुलगती हैं और मानव के मस्तिष्क असली चीनी और आर्टफिशल स्वीटनर के बीच सुंदर तरीके से अन्तर प्रदान करता है।

पिछले दो अध्ययनों में, दस और उनके सहयोगियों ने पाया कि मक्खियाँ पस्संदीदा असली चीनी और शून्य कैलोरी स्वीटनर के बीच स्वाद नहीं सकते जो ऊर्जा वरीयता के सिद्धांत को रेखांकित करता है। दूसरे शोध मे उन्होंने एक तंत्रिका सर्किट – जिसे कप केक + करार दिया गया – का वर्णन किया जो खाने के लिए एक स्विच का काम करता है। कप केक न्यूरॉन्स को टर्न आन करने पर फल मक्खियों को भूख “महसूस” होना बंद हो जाता है, दस कहती हैं।

 

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मोनिका दस
यू – एम आणविक, सेलुलर, और विकासात्मक जीव विज्ञान विभाग