लोकतंत्र दुनिया के नागरिकों को अधिक बिजली प्रदान करता है
एन आर्बर- मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता का कहना हैं कि लोकतांत्रिक विकासशील देशों में रहने वाले लोगों को तानाशाही में रहने वाले की तुलना में अधिक बिजली मिलने की संभावना है।
लगभग 150 देशों में बिजली उपयोग के व्यापक नए अध्ययन में ब्रायन मिन ने, जो राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर है, कहा कि प्रतिस्पर्धी चुनाव देश के नागरिकों को बिजली का प्रावधान देता है खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ गरीबी का दर उँचा है।
“भारत, तुर्की और ब्राजील जैसे लोकतांत्रिक देशें अपने नागरिकों को 10 प्रतिशत अधिक बिजली उपलब्ध कराती हैं,” मिन ने कहा जो अपने नई किताब “पावर ऐन्ड द वोट: इलेक्शन ऐन्ड इलेक्ट्रिसिटी इन द डिवेलपिंग वर्ल्ड” में इस मुद्दे पर चर्चा करते है ।
यह संबंध धन, जनसांख्यिकी, और भौगोलिक कारकों में मतभेद को नियंत्रित करने के बाद भी रहता है।
दुनिया के कई हिस्सों में बिजली के उपयोग पर डेटा अविश्वसनीय है, इसलिये मिन ने रात के उपग्रह इमेजरी का इस्तेमाल किया क्योंकि लगातार साल भर रात में दिखाई देने वाली रोशनी बस्तियों की पहचान करती है।
रात में प्रकाश हस्ताक्षर बिजली के उपयोग का एक विश्वसनीय सूचक माना जाता है, और मिन ने गरीबों को बिजली के वितरण के अध्ययन के लिए दो दशक के डेटा का विश्लेषण किया।
अगर लोकतंत्र बेहतर सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करता हैं, तो चीन जैसे ऑटक्रैटिक देश की सफलता का क्या कारण हैं? आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक, लगभग सभी चीनी गांवों अब विद्युतीकृत हैं। लेकिन भारत में, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं, एक तिहाई से अधिक ग्रामीणों के पास बिजली नहीं है।
मिन के अनुसार, यह सरकारी दरों द्वारा स्वयं रिपोर्ट आंकड़ों पर निर्भर करता है, और राज्य अपने आंकड़ों के लिए असंगत परिभाषाएँ और अस्थिर अनुमान का उपयोग करते है।रात में उपग्रह आधारित पद्धति की रोशनी एक अलग कहानी बताती है, मिन कहते हैं।
मिन कहते हैं कि चीन और भारत के लिए बिजली के क्षेत्र, विशेष रूप से इन देशों के सबसे गरीब भागों में, आश्चर्यजनक रूप से समान है। वास्तव में, चीन की एक चौथाई आबादी से, जिसमे गरीब मध्य प्रांत सिचुआन, युन्नान शामिल हैं, स्थिर प्रकाश उत्पादन नही होता हैं।
मिन का तर्क है कि डेमोक्रेटिक नेतायें कई कारणों से बिजली जैसी सार्वजनिक सेवाओं के वितरण को प्राथमिकता देते हैं। बिजली प्रावधान कई मतदाताओं को प्रभावित करता है और आम जनता से राजनीतिक समर्थन जीतने के लिए एक कारगर तरीका है।
इसके अलावा, राजनेताये वोट हासिल करने के लिए पावर ग्रिड को कहां, कब, और कैसे विस्तार करते हैं, यह लोगो को प्रभावित करता है।
“चुनावों मे बिजली को टारगेट करना सबसे ज्यादा होता है क्योकि इस समय मतदाता का ध्यान और राजनीतिक बदलाव के अवसर और क्षमता सबसे अधिक होते है,” उन्होंने कहा।
पिछले दो दशकों में भारत के उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव पर नज़र रख कर मिन दिखाते है कि गांवों को चुनाव के वर्ष में अधिक स्थिर बिजली मिली।
मिन कहते हैं कि बिजली का उपयोग और राजनीति के बीच संबंध का जलवायु परिवर्तन के बहस में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा कि जैसे- जैसे दुनिया अमीर हुआ, ऊर्जा का उपयोग भी त्वरित हुआ हैं। 1990 के बाद औसत वैश्विक आय में केवल 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि वैश्विक बिजली की खपत दोगुनी हो गई है।
“जैसे- जैसे अर्थव्यवस्थाओं बढ़ती है, ऊर्जा के लिए प्यास में भी बढ़ोतरी होगी” मिन ने कहा। “उस प्यास बुझाने कि लिये और जलवायु परिवर्तन के खतरों को संतुलन मे रखने के लिये राजनीतिक संस्थाओं द्वारा काम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।”